बढ़ती आबादी, घटते संसाधन


 


 


अमेरिका के एक वैज्ञानिक मार्सटन बेट्स ने भविष्यवाणी की है, 'अगर अगली शताब्दी में विश्व की जनसंख्या वर्तमान गति से ही बढ़ती रही, तो विश्व के कुल जनसमूह का वजन पृथ्वी के वजन के बराबर हो जाएगा यानी पृथ्वी का भार दूना हो जाएगा।' जैसे-जैसे सनसंख्या बढ़ी, जटिलता बढ़ती गई और उसी अनुपात में स्वास्थ्य, आरोग्य, आजीविका, संरक्षण, खाद्य पदार्थ, निवास स्थान, शिक्षा, सामाजिकता, अपराध आदि समस्याएं भी Tag T ale बढ़ती गईं। भारत की जनसंख्या वृद्धि की भयावहता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि पूरे विश्व की भूमि का 2.4 प्रतिशत भाग हमारे देश का है, जबकि जनसंख्या सारे विश्व की जनसंख्या की सोलह प्रतिशत है। एक सर्वेक्षण के अनुसार बढ़ती जनसंख्या के लिए हमें प्रतिवर्ष एक लाख सताईस हजार नए स्कूल तथा तीन लाख पचहत्तर हजार नए शिक्षकों की आवश्यकता होगी। इनके रहने के लिए पच्चीस लाख नए घर, चालीस लाख नई नौकरियां और एक करोड़ पच्चीस लाख क्विंटल अतिरिक्त अन्न की आवश्यकता होगी। भारत की जनसंख्या एक अरब चालीस करोड़ के आंकड़े को पार करने वाली है। यानी विश्व के छह व्यक्यिों में एक भारतीय है। बढ़ती आबादी के कारण हमारे प्राकृतिक और कृत्रिम संसाधन जनसंख्या वृद्धि के अनुपात में कम पड़ रहे हैं। भारत की जनसंख्या इंग्लैंड और फ्रांस की जनसंख्या की आठ गुना, जर्मनी की बारह गुना, आस्ट्रेलिया की इकसठ गुना और जापान की आठ गुना है। भारत की कुल कृषि योग्य भूमि 16.6 करोड़ हेक्टेयर है, इसमें से 14.1 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर ही खेती होती है। इस जमीन की उपज से जनसंख्या को पर्याप्त खाद्यान्न उपलब्ध कराना संभव नहीं है। भारत में सौ एकड़ कृषि भूमि पर एक सौ पच्चीस व्यक्ति आश्रित हैं, जबकि अमेरिका में ।। चालीस, कनाडा में बीस, आस्ट्रेलिया में पच्चीस और फ्रांस में अस्सी व्यक्ति आश्रित हैं। यानी खाद्यान्न उत्पादन के मामले में हमारी स्थिति अत्यंत निराशाजनक है। कम खाद्यान्न कमजोर शारीरिक क्षमता वाले लोगों की संख्या बढ़ा रहा है। इसी कारण अल्पपोषित, गरीब और नागरिक सुविधाओं से वंचित व्यक्तियों की संख्या बढ़ रही है। परिणामस्वरूप बेरोजगार नौजवान, सड़कों पर घूमते भिखारी, फुटपाथ पर जीवन यापन करने वाले, भूमिहीन मजदूर अनियंत्रित जनसंख्या वृद्धि के परिणाम हैं। सन 2030 में एक व्यक्ति के हिस्से में 0.10 एकड़ कृषि योग्य भूमि आएगी। इतनी कम भूमि पर आश्रितों की संख्या बढ़ती गई तो आने वाले दिन अत्यंत कष्टप्रद होंगे। द पॉपुलेशन बम' नामक पुस्तक में एलरिक और फेमलिन नामक वैज्ञानिकों ने लिखा कि विश्व की जनसंख्या इसी तरह बढ़ती गई तो दो सौ वर्ष बाद धरती पर छह सौ लाख अरब लोग होंगे। एक वर्ग गज जमीन पर सौ लोग रहेंगे। ऐसी स्थिति में पृथ्वी पर सभी जगह दो हजार मंजिली इमारतें खड़ी करनी पड़ेंगी, तब लोगों के आवास की व्यवस्था संभव होगी। पर्यावरणविदों के अनुसार स्वस्थ पर्यावरण के लिए तैंतीस प्रतिशत भूमि पर वन होने चाहिए, जबकि भारत की कुल ग्यारह प्रतिशत भूमि पर वन हैं, जो किसी भी लिहाज से संतोषप्रद नहीं कहा जा सकता है। इस मामले में राजनीतिक इच्छाशक्ति के महत्त्व का कम ही उल्लेख होता है। सरकारें जनसंख्या नियंत्रण के प्रति कभी गंभीरता नहीं दिखातीं और यह समस्या कार्यपालिका, व्यवस्थापिका और नौकरशाही में उलझ कर रह जाती है। यद्यपि जनसंख्या की समस्या के प्रति भारत में सोच का कभी अभाव नहीं रहा। गर्भनिरोधकों के प्रति लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए नगद राशि और अन्य उपहारों की व्यवस्था भी की गई। यह काम सरकारी तंत्र से करवाया गया। स्थानीय निकायों, जनप्रतिनिधियों या अन्य स्वयंसेवी संस्थाओं की इसमें कोई मदद नहीं ली गई। परिणामरूवरूप यह कार्यक्रम विफल हुआ। बंध्याकरण (नसबंदी) की कागजी खानापूर्ति हुई, प्रोत्साहन राशि अफसरों और सरकारी कमर्चारियों की जेबों में चली गई। सन 1975 में आपातकाल की घोषणा की गई, जिसमें परिवार नियोजन को प्रमुखता दी गई। उस दौरान ऐसी घटनाएं भी सामने आईं, जिनमें लक्ष्य पूरा करने के लिए अविवाहित नवयुवकों को भी पकड़ कर जबरन नसबंदी कर दी गई। परिणामस्वरूप पूरी योजना इतनी बदनाम हो गई कि देश का पूरा जनमानस परिवार नियोजन कार्यक्रमों के खिलाफ हो गया। आगे आने वाली सरकारों ने इसी कारण परिवार नियोजन कार्यक्रम की जगह सामुदायिक स्वास्थ्य कर्मी योजना प्रारंभ की, लेकिन यह योजना सरकार की गैर-जिम्मेदारी के कारण विफल रही। जल संसाधन की दृष्टि से अनुमानत- प्रतिवर्ष औसतन चालीस करोड़ हेक्टेयर मीटर जल भारत में उपलब्ध है। चार महीनों के मानसून में तीस करोड़ हेक्टेयर मीटर वर्षा का जल जमा हो जाता है, लेकिन जलवायु परिवर्तन और गरम हो रही धरती के कारण तीस करोड़ हेक्टेयर मीटर वर्षा कहीं पंद्रह करोड़ मीटर हेक्टेयर वर्षा पर न आकर सिमट जाए। सरकारी आंकड़ों के अनुसार पंद्रह से बीस प्रतिशत लोगों को शुद्ध पेय जल उपलब्ध नहीं हो पाता है। अगर जनसंख्या इसी तरह बढ़ती रही तो पेय जल की बात तो दर, सामान्य जल के लिए भी संघर्ष होगा। कारखानों का कचरा जल संपदा को भी अनुपयोगी बना रहा है। जनसंख्या वृद्धि के कारण बेरोजगारों की संख्या बढ़ रही है। सरकारी नौकरियों की एक सीमा है और यह उन्हें ही मिलती है, जो कुशाग्र होते हैं। इतना ही नहीं, बढ़ी हुई आबादी के लिए अन्न जुटाना मुश्किल हो रहा है। जंगल काटे जा रहे हैं, पशुओं के चरने की जगह छीन कर खेती की जा रही है, फिर भी आवश्यकता भर अन्न पूरा नहीं होता। परिणामस्वरूप भुखमरी और बीमारी से एक बड़ी जनसंख्या काल के गाल में चली जाती है। ऐसी स्थिति में और अधिक आबादी बढ़ाना देश के लिए समस्याजनक ही होगा। सभी विचारक और बुद्धिजीवी इस बात की बड़ी आवश्यकता महसूस कर रहे हैं कि अगर देश में अर्थसंकट उत्पन्न नहीं करना है, तो तेजी से बढ़ती जनसंख्या को फौरन रोका जाए। दूसरे विद्वान आबादी नियंत्रण के लिए अनेक कृत्रिम उपाय सुझाते हैं। जो भी हो, इतना निश्चित है कि जनसंख्या वृद्धि से मानव जाति की कठिनाइयां दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं। आबादी इतनी विकट समस्या उत्पन्न करती है कि वह मानव का आत्मगौरव तथा आत्मशक्ति भी नष्ट कर देती है। जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक आदि सभी क्षेत्रों में अनेक समस्याएं खड़ी हो गई हैं। इस कारण न लोगों को पौष्टिक भोजन मिल पा रहा है और न रहने को शुद्ध जलवायु और समुचित रहवास। जिन देशों ने जनसंख्या नियंत्रण में सफलता पाई है, वह राजनीतिक इच्छाशक्ति की बदौलत ही संभव हो पाया है। जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए चीन के प्रयासों से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। सन 1949 जनवादी क्रांति के बाद चीन एक अति पिछड़ा देश माना जाता था। पचास वर्ष बाद आज उसकी गिनती अमेरिका, जापान, जर्मनी, ब्रिटेन के बाद सबसे ताकतवर अर्थव्यवस्थाओं में की जाती है। इस देश ने जो उन्नति की है, उसमें सबसे ज्यादा योगदान उसकी जनसंख्या नियंत्रण नीतियों का रहा है। परिवार नियोजन की नीति के अंतर्गत विवाह की उम्र बढ़ाई गई, बच्चों के जन्म के बीच अंतराल बढ़ाया गया और बच्चों की संख्या एक तक सीमित रखी गई। सभी सरकारी अधिकारियों के लिए परिवार नियोजन अपनाना आवश्यक बना दिया गया। हर व्यक्ति को परिवार नियोजन के प्रति शिक्षित करने की व्यवस्था और आवश्यक सूचनाएं पहुंचाने की व्यवस्था गंभीरता से लागू की गईं। गर्भ निरोधक वस्तुओं और सुविधाओं को लोगों तक मुफ्त में पहुंचाया गया। लोगों का जीवन स्तर सुधारने का प्रयास किया गया। चीन द्वारा अपनाए गए इन कार्यक्रमों के कारण चौंसठ करोड़ बच्चों के जन्म को तीस वर्षों में रोका गया है। इन्हीं उपायों को अगर देश, काल और परिस्थितियों के अनुसार भारत में भी लागू किया जाए, तो सफलता की आशा की जा सकती है।