ऐसे वक्त में जब सरकार, सुरक्षाकर्मी और चिकित्साकर्मी हर शख्स को कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए प्राणपन से लगे हैं, दिल्ली के निजामद्दीन इलाके में तबलीगी जमात का जलसा आत्मघाती साबित होता जा रहा है। जलसे में भाग लेकर देश के विभिन्न भागों में गये लोगों की मौत और संक्रमण की खबरें विचलित करने वाली हैं। तबलीगी जमात की वे दलीलें तर्कहीन हैं कि यह आयोजन जनता कयूं और लॉकडाउन से पहले का है। सवाल यह कि जब आयोजन से पहले ही दिल्ली में सामूहिक आयोजनों पर प्रतिबंध की सूचना जारी कर दी गई थी तो उस पर अमल क्यों नहीं किया गया? सवाल यह भी कि इसमें शामिल लोगों के संक्रमित होने और मरने की खबरें समय रहते शासन-प्रशासन को क्यों नहीं दी गईं ताकि रोकथाम के प्रयास होते। सरकार द्वारा सामाजिक दूरी व क्वारंटाइन की जो सलाह दी गई थी, उस पर अमल बाद में भी क्यों नहीं किया गया? क्यों हजार से अधिक देसी-विदेशी लोगों की एक जगह रहने की जानकारी केंद्र व राज्य सरकार को नहीं दी गई। कहीं न कहीं इस जलसे की जवाबदेही से दिल्ली सरकार और पुलिस भी नहीं बच सकती। ऐसा नहीं हो सकता है कि देश-विदेश से आए दो हजार से अधिक लोग जुटें और स्थानीय खुफिया तंत्र को जानकारी न हो। निसंदेह यह तबलीग के कर्ताधर्ताओं की आपराधिक लापरवाही है, जिसके चलते जलसा संक्रमण का वाहक बना। तेलंगाना व कश्मीर में इसमें शामिल लोगों की मौत और असम से लेकर अंडमान तक जलसे में शामिल लोगों का संक्रमित होना सरकार के संक्रमण को रोकने के प्रयासों को पलीता लगाने जैसा है। आयोजकों ने कोरोना कहर की घटनाओं को इरादतन नजरअंदाज किया। एक ओर मस्लिम समाज के । बुद्धिजीवी व उलेमा लॉकडाउन के दौरान नमाज के लिए एकत्र न होने की अपील करते रहे, वहीं इन आयोजकों ने पूरे देश की सुरक्षा को खतरे में डाल दिया। कल्पना कीजिये-जलसे से विभिन्न राज्यों में अपने घर लौट रहे संक्रमित लोगों ने कितने लोगों को वायरस बांटा होगा। वे कितने वाहनों और शहरों से गुजरे होंगे। घर पहुंचकर कितनी जगह गये होंगे और कितने लोगों से मिले होंगे। वह भी तब जबकि अभी तक सारे लोग पुलिस-प्रशासन की जद में नहीं आ सके हैं। वे अभी कहां-कहां और कितना संक्रमण फैला रहे होंगे, सोचकर भी डर लगता है। इसके बावजूद हजार से ज्यादा लोग तबलीग के मुख्यालय में थे. जिन्हें पुलिस प्रशासन ने अस्पतालों और क्वारंटाइन सेंटरों में पहुंचाया। इस कृत्य के लिए किसी संप्रदाय विशेष को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, जैसे कि सोशल मीडिया पर हवा बहने लगी हैं, मगर जहां आस्था तार्किकता व विज्ञान की चुनौतियों को खारिज करने लगे तो ऐसी धारणाएं बनने लगती है। आस्था को हर चीज से ऊपर मान लेना आत्मघाती ही है। पंजाब में विदेश से आये एक ग्रंथी ने जिस तरह घूम-घूमकर पंजाब के संक्रमित लोगों में से आधे लोगों को वायरस बांटा, वह हमें बहुत कुछ सोचने को मजबूर करता है। केरल में भी एक पादरी की इस बाबत गिरफ्तारी हुई है। सवाल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के अयोध्या आयोजन में भाग लेने को लेकर भी उठे जो प्रधानमंत्री की एकांतवास की अपीलों के विपरीत है। हमारे सामने इटली का उदाहरण है जहां मिलान में फुटबाल के आयोजन में बड़ी संख्या में लोगों की भागीदारी के बाद कोरोना संक्रमण के दंश से इटली अभी तक उबर नहीं पाया है। वहीं सरकार व डॉक्टरों के निर्देशों की अवहेलना करने के कारण सुपर पॉवर अमेरिका के लोग दुनिया की उन्नत चिकित्सा सुविधाओं के बावजूद बेबस नजर आ रहे हैं। निसंदेह तबलीगी जमात की हरकत से देश में सामुदायिक संक्रमण का खतरा बढ़ गया है। ऐसे में जलसे में शामिल बाकी संक्रमित लोगों को जांच के लिए आगे आना चाहिए।
संक्रमण की जमात